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लखनऊ KGMU का बड़ा खुलासा

लखनऊ KGMU का बड़ा खुलासा

 लखनऊ। केजीएमयू के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में पिछले साल से खून की ऑटोमेटेड जांच की सुविधा शुरू हुई है। इसमें चौंकाने वाले व चिंताजनक नतीजे सामने आ रहे हैं। विभाग में रक्तदान के लिए आने वाले लोगों के खून में सिफलिस का संक्रमण मिला है। पिछले साल जहां इसके आठ मरीज मिले थे, वहीं इस साल भी आठ महीने में आठ रक्तदाताओं में सिफलिस की पुष्टि हो चुकी है। बैक्टीरिया जनित बीमारी सिफलिस भी एचआईवी-एड्स की तरह असुरक्षित यौन संबंध और खून चढ़ाने से फैलती है।

ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. तूलिका चंद्रा ने बताया कि अभी तक विभाग में खून की जांच मैनुअली ही होती थी। पिछले साल से जांच का काम पूरी तरह से ऑटोमेटेड हो गया है। सामान्य रूप से किसी भी रक्तदान के बाद खून में मुख्य रूप से पांच जांच की जाती हैं। इनमें एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी, मलेरिया और सिफलिस की जांच शामिल होती है। आमतौर पर रक्तदाताओं के खून में एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस-सी के मामले ही सामने आते हैं। लेकिन पिछले साल से ऑटोमेटेड जांच शुरू होने के बाद सिफलिस के मामले भी मिलने भी शुरू हो गए हैं।

हर साल होता है 70 हजार यूनिट रक्तदान

प्रो. तूलिका चंद्रा ने बताया कि विभाग में हर साल करीब 70 हजार यूनिट रक्तदान होता है। इनमें से हेपेटाइटिस बी के करीब 180, हेपेटाइटिस सी के 80 और एचआईवी के लगभग 20 मरीज मिलते हैं। पिछले साल से सिफलिस के मरीज मिलने शुरू हुए हैं। यह आंकड़ा भले ही आठ का हो, लेकिन इसके खतरे को देखते हुए यह गंभीर बात है।

असुरक्षित यौन संबंध से होती है बीमारी

सिफलिस एक बैक्टीरिया से फैलने वाला संक्रमण है। इस बैक्टीरिया को ट्रैपोनेमा पैलिडम कहते हैं। यौन संबंधों के साथ ही संक्रमित के घाव के संपर्क में आने वालों में भी यह रोग फैलता है। इस बीमारी में जननांगों में दर्द और घाव के साथ खुजली होती है। बीमारी बढ़ने पर शरीर पर चकत्ते हो जाते हैं। तीसरे चरण में व्यक्ति के किसी अंग पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जिसकी वजह से आंखों की रोशनी जाने के साथ ही लकवा होने की आशंका भी होती है। सिफलिस को इसलिए भी खतरनाक माना जाता है, क्योंकि सिफलिस से पीड़ित व्यक्ति में एचआईवी होने की आशंका पांच गुना तक ज्यादा होती है। सिफलिस की बीमारी असुरक्षित यौन संबंध से फैलती है। इसकी वजह से गर्भवती महिला को मरा हुआ बच्चा भी पैदा हो सकता है।

छिपाएं नहीं, संभव है इलाज

प्रो. तूलिका चंद्रा का कहना है कि ब्लड बैंक के माध्यम से मरीजों को सुरक्षित खून उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी है। इसके लिए रक्तदान के बाद खून की जांच की जाती हैं। ऑटोमेटेड जांच व्यवस्था शुरू होने के बाद रक्तदाताओं में सिफलिस के मामले मिलने लगे हैं। इसका कारा संक्रमितों द्वारा शर्म या संकोच की वजह से बीमारी को छिपाना हो सकता है। ऐसे लोग शर्म छोड़कर तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। इसका इलाज संभव है, लापरवाही न करें।

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